Kill yourself to get a new life.
चम् चमता भारत (my presentation@Ndtv)
Sunday, March 20, 2011
नफस नफस कदम कदम
बस एक फ़िक्र दम बा दम
घिरे हैं सवाल से हमे जवाब चाहिए
जवाब दर सवाल है
की इंक़लाब चाहिए
इंक़लाब का झंडा इस देश में सबसे पहले मंगल पाण्डेय ने 1857 में उठाया था
जिसे बाद में गांधी जी ने संभाला
गांधी जी, जिन्हें एक भजन बहुत पसंद था
वैष्णवा जन तो तेने कहिये, जे पीड पराई जाने रे
मतलब असली वैष्णव, यानी हिन्दू वो हैं, जिन्हें दूसरों के दर्द का एहसास हो
हिंदुस्तान की सरकारों को दूसरों के दर्द का एहसास है या नहीं यह हमे नहीं मालूम
70 करोड़ से अधिक हिन्दुस्तानी 22Rs रोजाना पे जिंदा हैं, इसके बावजूद सबसे ज्यादा Engineers और Doctors हर साल इसी देश में बनते हैं
एक भारत के अन्दर दो भारत हैं
एक रंगीन चमचमाता जिंदादिल, जिसकी हर शाम malls में और रातें multiplex में गुज़रती हैं
एक दूसरा भारत भी है, जहाँ भूख है, अशिक्षा है, गन्दगी है, जहाँ गरीबी ज़िन्दगी के साथ जोंक की तरह चिपकी हुई है
शकील बदाइउन ने लिखा था
"जवान जवान हंसी हंसी, यह लखनऊ की सरज़मीन"
पर यह बात लखनऊ पे नहीं बल्कि पूरे भारत पे लागू होती है
दरअसल भारत एक एहसास है जिसे रूह से महसूस किया जा सकता है
बस एक फ़िक्र दम बा दम
घिरे हैं सवाल से हमे जवाब चाहिए
जवाब दर सवाल है
की इंक़लाब चाहिए
इंक़लाब का झंडा इस देश में सबसे पहले मंगल पाण्डेय ने 1857 में उठाया था
जिसे बाद में गांधी जी ने संभाला
गांधी जी, जिन्हें एक भजन बहुत पसंद था
वैष्णवा जन तो तेने कहिये, जे पीड पराई जाने रे
मतलब असली वैष्णव, यानी हिन्दू वो हैं, जिन्हें दूसरों के दर्द का एहसास हो
हिंदुस्तान की सरकारों को दूसरों के दर्द का एहसास है या नहीं यह हमे नहीं मालूम
70 करोड़ से अधिक हिन्दुस्तानी 22Rs रोजाना पे जिंदा हैं, इसके बावजूद सबसे ज्यादा Engineers और Doctors हर साल इसी देश में बनते हैं
एक भारत के अन्दर दो भारत हैं
एक रंगीन चमचमाता जिंदादिल, जिसकी हर शाम malls में और रातें multiplex में गुज़रती हैं
एक दूसरा भारत भी है, जहाँ भूख है, अशिक्षा है, गन्दगी है, जहाँ गरीबी ज़िन्दगी के साथ जोंक की तरह चिपकी हुई है
शकील बदाइउन ने लिखा था
"जवान जवान हंसी हंसी, यह लखनऊ की सरज़मीन"
पर यह बात लखनऊ पे नहीं बल्कि पूरे भारत पे लागू होती है
दरअसल भारत एक एहसास है जिसे रूह से महसूस किया जा सकता है
Ritcher Scale: Misconceptions
Sunday, March 13, 2011
The Richter scale has always been widely misunderstood by nonscientists, though perhaps a little less so now than in its early days when visitors to Richter’s office often asked to see his celebrated scale, thinking it was some kind of machine. The scale is of course more an idea than an object, an arbitrary measure of the Earth’s tremblings based on surface measurements. It rises exponentially, so that a 7.3 quake is fifty times more powerful than a 6.3 earthquake and 2,500 times more powerful than a 5.3 earthquake.
Labels:
earth quake ritcher scale misconceptions
Posted by
Praveen Prasad
at
Sunday, March 13, 2011
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लड़की होने की सजा
Tuesday, March 8, 2011
लड़की को लेके हमारे पूर्वाग्रह बहुत पुराना हैं
किसी धर्म में श्रृष्टि की पहली महिला हव्वा, सृष्टि के पहले पुरुष आदम की पसली से पैदा होती है
किसी धर्म में वो शौहर की खेती कहलाती है
किसी धर्म में उसे बहुत सारी अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है
लड़की तो हमारे दुआओं में भी नहीं आती है
हम दुआएं भी देते है तो अक्सर कहते हैं
"दूधो नहाओ पूतो फलो"
लड़की की कामना कोई नहीं करता है
क्या हमने लड़की को अपने तसब्बुर से भी खारिज कर दिया है
--copied
किसी धर्म में श्रृष्टि की पहली महिला हव्वा, सृष्टि के पहले पुरुष आदम की पसली से पैदा होती है
किसी धर्म में वो शौहर की खेती कहलाती है
किसी धर्म में उसे बहुत सारी अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है
लड़की तो हमारे दुआओं में भी नहीं आती है
हम दुआएं भी देते है तो अक्सर कहते हैं
"दूधो नहाओ पूतो फलो"
लड़की की कामना कोई नहीं करता है
क्या हमने लड़की को अपने तसब्बुर से भी खारिज कर दिया है
--copied
यह U.P. की सरज़मीन है
Saturday, March 5, 2011
यह उ.प की सरज़मीन है
कभी यहाँ राम राम कहा जाता था अब कांशी राम कहा जाता है
गौ माता की जगह गुलाबी रंग के पत्थर के हाथी के बुतों ले ली है
भगवान् के भक्तों की संख्या चाहे ना बढ़ी हो पर बहनजी के चमचों की संख्या दिन पर दिन बढ़ रही है
राम, कृष्ण, विष्णु, देवताओं के लिए यहाँ कोई जगह नहीं है
क्यूंकि यहाँ रावण कंस दुर्योधन दुशासन को खुले घुमने की आज़ादी है.
द्रौपती के चीर हरण पे किसी भीम का खून नहीं खौलता, वो कहीं लापता है
Another Blog On U.P.
कभी यहाँ राम राम कहा जाता था अब कांशी राम कहा जाता है
गौ माता की जगह गुलाबी रंग के पत्थर के हाथी के बुतों ले ली है
भगवान् के भक्तों की संख्या चाहे ना बढ़ी हो पर बहनजी के चमचों की संख्या दिन पर दिन बढ़ रही है
राम, कृष्ण, विष्णु, देवताओं के लिए यहाँ कोई जगह नहीं है
क्यूंकि यहाँ रावण कंस दुर्योधन दुशासन को खुले घुमने की आज़ादी है.
द्रौपती के चीर हरण पे किसी भीम का खून नहीं खौलता, वो कहीं लापता है
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