हमको पता न था सूरज बचकानी भाषा बोलेगा,
न जाने कब लाल किला मर्दानी भाषा बोलेगा.
अभी तलक तो लोहे ने सोने की भाषा बोली है,
अभी तलक तो अर्थी ने डोली की भाषा बोली है,
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न जाने कब युग का भगतसिंह, मर्दानी भाषा बोलेगा,
न जाने कब लाल किला मर्दानी भाषा बोलेगा
संविधान को नेता के घर पानी भरते देखा है,
खुद्दारी को गद्दारी की पोलिस करते देखा है,
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जाने कब जन मानस तूफानी भाषा बोलेगा,
न जाने कब लाल किला--
जिस दिन जनता विष बेलो को तेजबो से सिंचेगी,
जिस दिन बहे भीम बलि की दुस्सासन को भिचेंगी,
जिस दिन जयचंदों के बेटे दर कर देश छोड़ देंगे,
व्यभिचारी, भ्र्स्ताचारी-----
जिस दिन जनता संसद में से गद्द्रो को खिंचेगी
न जाने कब जन मानस तूफानी भाषा बोलेगा
न जाने कब लाल किला मर्दानी भाषा बोलेगा
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